"सब मर्जों की एक दवाई, सुमिरन-ध्यान करो मेरे भाई" - बाबा उमाकान्त महाराज

 "सब मर्जों की एक दवाई, सुमिरन-ध्यान करो मेरे भाई" - बाबा उमाकान्त महाराज



नामदान लेने वाले अगर माँस, मछली, अंडा, शराब नहीं छोड़ोगे तो भारी नुकसान होगा



ठिकरिया, जयपुर। बाबा उमाकान्त  महाराज ने 8 जुलाई को सत्संग में कहा कि जब तक मन, जीवात्मा के साथ ऊपर नहीं जाएगा और यह अपने स्थान, अपने पुंज, अपने देश नहीं पहुंचेगा, तब तक जीवात्मा का कल्याण नहीं हो सकता है। यह काम तब होगा जब साधना करोगे, मन को पतला करोगे। साधना करना बहुत जरूरी है और यह गुरु पूर्णिमा का कार्यक्रम भजन करने और कराने का है। यह कार्यक्रम यह समझाने का है कि

"सब मर्जों की एक दवाई, सुमिरन-ध्यान करो मेरे भाई"।

नए लोग जो नामदान लेने के लिए आए थे उनसे बाबाजी ने पूछा कि "आप लोग सुमिरन-ध्यान-भजन करोगे? माँस, मछली, अंडा, शराब; यह सब छोड़ोगे?" और कहा कि नामदान लेने वाले अगर इन गंदी चीजों का सेवन करोगे जो मनुष्य का भोजन नहीं है, परहेज नहीं करोगे तो भारी नुकसान होगा। इसको खाओगे तो चाहे कितनी बार भी जयगुरुदेव नाम बोलोगे तो नुकसान तो होना ही होना रहेगा, अगर नामदान ले कर के ऐसी गलती की तो।



 हमको भी सुधर जाना चाहिए। हमको भी मांस–मछली छोड़ देना चाहिए। अंडा शराब छोड़ देना चाहिए। चोरी, व्यभिचार ये गलत काम छोड़ देना चाहिए 

*मांसाहारी का साथ करने से भजन में बाधा पड़ जाती है।* 


आप सोचो जो लोग मांस खाते हैं उनका साथ करने से कैसा असर होता होगा। जिनके लिए कबीर साहब ने कहा -


" *मांसाहारी मानवा, प्रत्यक्ष राक्षस अंग। इनकी संगत जो करे, पड़े भजन में भंग।।* " 


कहा मांसाहारी का साथ कर लो, इनका असर आ जाए तो भजन में बाधा पड़ जाती है, भजन में रुकावट का जाती है। 


अब आप सोचो मांसाहारी के घर अगर कोई खा ले तो उसका कैसा असर होगा? कहा -



" *वैश्या, धीमर और शिकारी, नृप, विषयी और मांसाहारी। इन घर भोजन करे जो संता, साधन-भजन का हो जाए अंता।।* " 


कैसे-कैसे सन्तों ने समझाया है। यह बातें हमको, आपको, लोगों को भूल जाती हैं, इन सब बातों को याद रखने की जरूरत है प्रेमियों। और लोगों को बताने की जरूरत है जो बता सकते हो। अपनी-अपनी भाषा (लैंग्वेज) में, अपने-अपने शब्दों में आप उनको समझा सकते हो, बता सकते हो। कम पढ़े-लिखे हो, तो उस भाषा में समझाओ। पढ़े-लिखे, एजुकेटेड हो आप लोग तो उस भाषा में उनको समझाओ। समझाना चाहिए, बताना चाहिए।


*यह मनुष्य शरीर कांच के टुकड़े की तरह से है, कब खत्म हो जाए कोई भरोसा नहीं*


इस मनुष्य शरीर का कोई भरोसा नहीं है। यह कांच के टुकड़े की तरह से है, क्या पता कब टूट जाए? जैसे यदि कोई कागज की नाव बना ले और नदी में उसको चलाने लग जाए, कहे कि इस पर बैठ कर के हम नदी पार कर लेंगे तो उसका कोई भरोसा नहीं है कि पार हो जाओगे। जैसे ही कागज गलेगा वैसे ही नाव डूब जाएगी। उसी तरह से यह शरीर है, कहा गया "देखत ही छिप जाएंगे, ज्यों तारे प्रभात" रात को आसमान में तारे दिखाई पड़ते हैं लेकिन देखते-देखते ही छिप जाते हैं। ऐसे ही पानी का बुलबुला होता है और देखते-देखते खत्म हो जाता हैं, इसी तरह से यह जिंदगी है।


*काल करे सो आज कर, आज करे सो अब*


पहले के युगों में जितनी उम्र होती थी, वह पूरा करने के बाद लोग शरीर छोड़ते थे। लेकिन अब कलयुग में कोई भरोसा नहीं है इसीलिए "काल करे सो आज कर, आज करे सो अब"। अब करना क्या रहेगा? दिन में खेती, नौकरी, दुकान, दफ्तर का जो भी काम करना है आप करो। लेकिन ऐसा काम मत करना जिससे जीव हत्या होती है। अगर ऐसा काम करते हो तो उसको बंद कर देना और दूसरा काम कर लेना, उसमें आपको फायदा दिखेगा। अगर आप कोई मांस, मछली, बेचते हो, पकाते, खिलाते हो तो वह काम बंद कर दो। दूसरा काम शुरू कर दो, क्योंकि देने वाले का बड़ा लंबा हाथ होता है। हमारे गुरु महाराज पर आप भरोसा रखो, यह आपको भूखा नहीं सोने देंगे। जानवरों को मारने के लिए लाने वाले, बेचने वाले, खाने, खिलाने, पकाने वाले को, सबको बराबर पाप लगता है। तो अब पाप से बचना है। और समय निकाल कर के 2-3 घंटा सुबह, 2-3 घंटा शाम को भजन कर लेना।

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